जब कभी लगने लगता है
बस अब सब ठीक है
शांति है चारो ओर
ना कोई कोलाहल
ना कोई बैचैनी
ना कोई शोर,
तभी अचानक
जाने कैसे फट पड़ता है
कोई सुप्त ज्वालामुखी
और बहा ले जाता है
हर ख़ुशी,हर हंसी
अपने उबलते लावे से
झुलसा देता है,सब
कलियाँ कुम्हला जाती है
पंछी भूल जाते है उड़ना
रन-बिरंगी तितलियाँ भी
फिर कहाँ नज़र आती है
आज फिर सब ओर शांति है
ना कोई कोलाहल,ना कोई शोर
खिली है कलियाँ,तितलियाँ भी है
पंछी उड़ रहे है डाल डाल
लगता है फिर कहीं दूर
धरती की कोख में
अंगडाईयां ले रहा है
खौल रहा है कोई,ज्वालामुखी..........
लगता है फिर कहीं दूर
जवाब देंहटाएंधरती की कोख में
अंगडाईयां ले रहा है
खौल रहा है कोई,ज्वालामुखी..........
wah kya baat hai ..awaysome creation
keep it up
बहुत अच्छी कविता है........आपको बधाई!
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