सोमवार, 11 अक्तूबर 2010

यादों के ऊँचे बबूल.....

यादों के ऊँचे बबूल उग आये है दिल की पथरीली जमीन पर
साया ढूँढती  हसरते,तड़पते जज़्बात,चुनते है ख़ार अब दिन रात

जिक्रे मोहब्बत जो कभी होता है कहीं,ख़ामोश लौट आते है बज़्म से
सिहरा सा गुजरता है वो दिन,बहुत थर्राती है वो रात

खुद ही बना लिया नामालूम सा जहान,भटकते रहते है हर पल
खोजते फिरते है खुद को,अजनबी हर है शै,उलझी हुयी हर बात

एक खुदा हो तो इबादत करे कोई, उलझन बड़ी है समझे कहाँ कोई
किसको अब सजदे करे किसको खुदा कहे,बड़े मुश्किल से है हालत

तू बेवफा है की बावफा,क्यूँ सोचूं रात दिन,पालू क्यूँ ये फितूर
मेरी मोहब्बत की तासीर अलग,सनम तेरे जुदा से है हालत

तन को बनाया मोम,और खुद को गला दिया
जलते रहते हैं सनम, शम्मा की मानिंद सारी रात

तू अपनी धुन में मस्त,हम तेरी फिकर में हैं  गुम
तन्हा यहाँ है हम तू जाने कहाँ बसर करके आया रात

दस्ताने मोहब्बत अपनी बस इतनी सी है ऐ सनम
तू जहर दे तेरी ख़ुशी,चाहे पिला दे आब-ऐ-हयात....

2 टिप्‍पणियां:

  1. तू बेवफा है की बावफा,क्यूँ सोचूं रात दिन,पालू क्यूँ ये फितूर
    मेरी मोहब्बत की तासीर अलग,सनम तेरे जुदा से है हालत


    kya baat hai!! bahut khub!! ab tu bewafa rah ya bawafa........kyun sochun!!

    bahut hi pyari rachna......dil ko chhuti hui!!:)

    जवाब देंहटाएं
  2. asha ji,
    shikwa shikayat bhi usi se, yaad mein bewafa wahi basa bhi,yahi hota hai...waah bahut khoob. mann ke kai parat kholti rachna, badhai aapko.

    जवाब देंहटाएं

मैं...

  खुद में मस्त हूँ,मलँग हूँ मैं मुझको बहुत पसंद हूँ बनावट से बहुत दूर हूँ सूफियाना सी तबियत है रेशम में ज्यूँ पैबंद हूँ... ये दिल मचलता है क...