शनिवार, 2 सितंबर 2017

घुटन

जब घुटन बढ़ जाती है, 
थम जाती है हवा, रुक 
जाती है थिरकन पत्तों की
घिर जाती है घनघोर घटा
सारी कायनात थम सी जाती है
ज्यूँ साज़िशन किसिने तोड़ दिया
धरती का असमां से रिश्ता
तब बरस जाती है बदरी
लरज़ गरज के झमाझम
और धुल जाती है फ़िज़ा
घुल जाती है घुटन
लहक उठती है धरती
झूम जाता है गगन
ऐसा सावन में अक्सर होता है(आशा

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