ये रात भी क्या रात थी
ज़मीन हमसे दूर थी
अजब ग़ज़ब सी बात थी
हवा का रूख नरम सा था
ना सर्द ना गरम सा था
चाँद आस पास था
ख़ामोश मगर बोलता
धड़कनो का साज़ था
मय कभी चखी नहीं
कोई तलब रखी नहीं
फिर भी इक सुरुर था
हुआ तो कुछ ज़रूर था
तनहा सफ़र में डोलती
नज़र तुझे थी बस ढूँढती
तू दूर फिर भी पास था
एहसास कितना ख़ास था
मैं आज आसमां में थी
ज़मीं पर तारों का राज था .....(आशा)
ज़मीन हमसे दूर थी
अजब ग़ज़ब सी बात थी
हवा का रूख नरम सा था
ना सर्द ना गरम सा था
चाँद आस पास था
ख़ामोश मगर बोलता
धड़कनो का साज़ था
मय कभी चखी नहीं
कोई तलब रखी नहीं
फिर भी इक सुरुर था
हुआ तो कुछ ज़रूर था
तनहा सफ़र में डोलती
नज़र तुझे थी बस ढूँढती
तू दूर फिर भी पास था
एहसास कितना ख़ास था
मैं आज आसमां में थी
ज़मीं पर तारों का राज था .....(आशा)