सोमवार, 12 अगस्त 2019

कड़वे कान

कड़वे कान

काफ़ी वक़्त से वो कुछ खिंची सी रहती थी। मुस्कुराती भी यूँ के गोया अहसान कर रही हो। पहले पहल तो मैंने ध्यान नहीं दिया लेकिन बाद में काफ़ी अटपटा लगने लगा। सोचा पूछ ही लूँ । शुरू में तो वो बहाने बनाती रही। “ अरे कुछ भी नहीं है, आप खामखां परेशान हो रही है” पर थोड़ी देर में फट पड़ी “ आप मेरे बारे में सब जगह उलटा  सीधा बोलती है और मेरे आगे मेरी सगी बनी फिरती हैं” ।

ओ अच्छा तो ये बात है लेकिन मैंने एेसा वेसा कुछ कहा ये तुम्हें किसने बताया?  वो फलाने भैया हैं ना उन्होंने । तो फिर तुमने मुझसे पूछा क्यों नहीं ? वो वो ...अब वो हड़बड़ा गयी, मैंने मुस्कुरा के कहा “ वो जो तुम्हारे प्यारे भैया हैं ना बुलाओ उन्हें अभी दूध का दूध और पानी का पानी कर देते है। हैरान होते हुए उसने कहा “ ना कोई ज़रूरत नहीं मैं तो पहले भी मान नहीं पा रही थी पर जाने क्यों ....।

तुम्हारी ग़लती नहीं है, उसकी बातें होती ही इतनी मीठी और लच्छेदार हैं के हर कोई सच मान लेता है। जब उसने तुम्हारा नाम लेके मुझे बरगलाया था तो पहलेपहल मैं भी मान गयी थी लेकिन फिर सोचा के अगर एेसा कुछ होता तो कभी तो महसूस होता तुम्हारे व्यवहार से, या कोई और बताता! और मैंने  कोई भी राय नहीं बनायी। दरअसल मेरे कान  खुरदरे और कड़वे है, ज़्यादा शहद घुली चिकनी चुपड़ी बातें हज़म नहीं कर पाते।

इतना कहके मैं वहाँ से चल दी और वो बस चुपचाप देखती रही। उसके दिमाग में बस एक ही बात गूँज रही थी “ कड़वे कान”......(आशा)K

बदलाव

एक दिन अचानक यूँही
वक़्त की दहलीज़ पर छोड़
आयी थी कितना कुछ अनकहा
अपनी गुड़िया, माँ का आँचल
पापा का कन्धा, भाई बहन
कितना कुछ राह में छूट गया...
वो किताबों का ज़ख़ीरा,
रंग बिरंगी तितलियों वाली अल्बम
सब रह गया,और मैं चली गयी छोड़ कर....
सोचती हूँ आज भी तो हैराँ हो जाती हूँ
वो छोटे छोटे ख़्वाब, आरज़ू,लड़कपन
सब देहली पर चढ़ा दिए लाजों के साथ
अपने पीछे उलीच दिए अँजुरी भर भर
वो एक दुशाला खींच रहा था चुनर मेरी
उसके पीछे पीछे चली आयी आँखे मींचे
कुछ घबरायी, कुछ लजायी, अनजानो
के बीच अपना घर बसाने, झिझक कर
कांपते हाथों से सम्भाली नयी ज़िम्मेदारी
और बस!
तबसे अब तक वक़्त ही नहीं मिला
कभी मिला भी तो बिसरा दिया
हंस कर कभी दो आँसू बहाकर
ख़ुद को हर रोज़ बहला लिया
जब कभी बहुत जी चाहा तो
कग़ज का सीना चाक कर डाला
अब उम्र हो गयी और सपने बदल गए
बदल गए मेरे अहसास वक़्तके साथ
क्यूँकि अब मैं वो अल्हड़ लड़की नहीं
माँ हूँ, और माँ के सपने तो बसते हैं
अपने बच्चों की आँखो में......(आशा)Badlav
मेरी हसरतें, मेरी आरज़ू
तेरी जुस्तजु,बस तू ही तू
बेचेनियों में भी सुक़ुन सा
मेरी रूह का क़रार तू
शफक ,सूफ़ेद धूप सा
मेरी राहतों का सबब भी तू
क़ुर्बान तुझ पे दो जहाँ
मेरी जीत तू, मेरी हार तू

ईशान



क्या कहुँ तेरे लिए,
मेरी आँख का तू नूर है
सबसे ज़्यादा तुझ को चाहूँ
दिल का ये क़सूर है
रूठ जाना तेरी फ़ितरत,
तुझको मनाना मेरा शग़ल
तेरी एक छोटी सी हँसी
मेरे दिल का है सक़ून
तू मेरे आँचल का मोती
दिल का कोहिनूर है......(आशा)

शुभचिंतक

मेरे मोटापे से दुखी सभी शुभ चिंतकों से नम्र निवेदन,🙏

मैं जैसी हूँ अच्छी हूँ,
नहीं चाहती बदलना
हाँ मैं ढीठ हूँ
किसी चट्टान की मानिंद

रेशमी लटें नहीं,ना सही
मुझे पसंद हैं ये उलझे,
बेतरतीब घुंघराले बाल
हवा में आवारा उड़ते हुए

थोड़ा ज़्यादा फैले हुए
गाल, गुलाबी रंगत है यार!
एक छोटा सा डिंपल भी है
जो कमसे कम मुझे बहुत पसंद है

ना सही हिरणी से चाल
गज गामिनी ही सही,
क्या फ़र्क़ पड़ता है?
कैट वॉक थोड़े ही करनी है!

कोयल सी अवाज नहीं
खुरदरी भारी ही सही
बदल तो नहीं सकती,
और चाहती भी नहीं
रुआबदार है यार!

जाने क्यूँ दुनिया आमादा
है मुझे बदलने को
जिसे देखो एक आध
सलाह चिपका डालता है
वज़न कम करने की।

क्यूँ भाई जो हैं
पतले छरहरे,
सटीक फ़िगर वाले
उनको कोई रोग नहीं
या फिर ज़िंदगी में
कोई परेशानी नहीं?

मैं ख़ुश हूँ खुदसे
प्लीज़ रहने दो ख़ुश
मत करो किसी से
मेरी तुलना
मैं, मैं हूँ, कोई और
कैसे हो सकती हूँ?

एक साधारण मनुष्य हूँ
अप्सरा नहीं बनना चाहती,
ना ही बननाहै हीरोईन
थाइरॉड मरीज़ हूँ,
ये वज़न शौक़ नहीं,मजबूरी है,
और फिर ये मेरी ज़िंदगी है
जीने दो, मुझे मेरे तरीक़े से ।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

ज़िन्दगी

गड़ती है नए क़िस्से
कभी ख़ामोश रहती है
कभी तूफ़ाँ मचा देती
कभी बस यूँही तकती है
अजब अन्दाज़ है तेरा
ग़ज़ब की धाक रखती है
समझना ज़रा मुश्किल
सरल सी तेरी हस्ती है
कभी फूलों की डाली है
कभी काँटों की झाड़ी है
चहकती चिड़ियों सी फिरे
कभी बुत सी तू ठहरी है
कभी मीठी कभी कड़वी
कभी चंचल गिलहरी है
कभी थाली सी उथली है
कभी सागर सी गहरी है
ख़ुशियों की वजह है तू
कभी ग़म की गठरी है
गरजती है, कभी बिन बात
कभी यूँही बरसती है
कभी ख़ुश होके तू झूमे
कभी यूँही तरसती है
लगता है मुझे अक्सर के
तू ज्यूँ सावन की बदरी है ....(आशा)

मैं...

  खुद में मस्त हूँ,मलँग हूँ मैं मुझको बहुत पसंद हूँ बनावट से बहुत दूर हूँ सूफियाना सी तबियत है रेशम में ज्यूँ पैबंद हूँ... ये दिल मचलता है क...