सुनो कुछ ना कहना 
आज बहुत व्यस्त हूँ
खो गयी थी जाने कब से 
पुरानी सी कई कहानियाँ
उन्हें ही ढूंढ रही हूँ
कई सारी धरोहरे 
कई सारी अमानते
आज तो ढूंढनी ही है
ठान लिया है मैंने 
और इसी धुन में मस्त हूँ... 
सारा घर छान मारा है
कोना कोना बुहारा है
ढूंढ निकाली है बहुत सारी
यादों की कतरने  
धूल में लिपटे कुछ
अधूरे सपने भी मिले है
रख के उन्हें कोने में 
मै भूल गयी थी !!!
थोड़ी सी शिकायते,शिकवे
लिपटे मिले है एक पुराने  
बक्से में रख के छोड़ दिया था
या कहो,इनसे नाता तोड़ दिया था
थोड़े आंसू भर के रखे थे
उस नीली शीशी में कभी
सोचा था असमान को उधार दे दूंगी
पर भूल गयी और जाने कितने 
सावन यूँ ही रीते बीत गए......
एक रेशमी रुमाल में सहेजी हुयी 
करीने से रखी हंसी भी मिली 
इसे चुपके से बिना बताये किसीको
सहेज संभल कर रखा था,
जाने कब इसकी जरूरत  पड़ जाये!!
आजकल माहौल जरा ख़राब चल रहा है
क्या मौके पे मिली है,चस्पा कर ली है 
अब होंठ बरबस मुस्कुरा रहे है
पुरानी डायरी में रखे मिले है
कुछ सूखे फूल, अब भी महक बाकी है
सारा कमरा  महक उठा है 
रूमानी सा  हो गया है आलम
पुरानी ग़ज़लों की एक किताब
जाने कहाँ रख छोड़ी थी,
चलो आज मिल ही गयी...
सोच रही हूँ फिर से झाड़-पौंछ कर
सँभाल, सहेज कर रख दूँ इन्हें
अनमोल खज़ाना है
कोई देखे इससे पहले समेट दूँ
सारी यादों की बना लूँ अल्बम 
अधूरे सपनो को पूरा करने की
ढूंढ निकलूं कोई तरकीब
आंसू उधार सावन को दे आऊं
शिकवे शिकायते तो फिर से
बंद कर दूंगी,या फ़ेंक ही देती हूँ
सूखे फूलों की पंखुड़ियों का
इत्र बना के रखूंगी
तुम आओगे पास जब भी
धीरे से महकने लगूंगी
गुलाबों की तरह,तुम्हे भी महका दूंगी
पुरानी गज़ले कितनी रूमानी है
याद है तुम-हम हाथों में हाथ लिए
मूंद के आँखे पहरों बिता देते थे
फिर से निकालो थोडा सा वक़्त कभी
सुनेंगे वही ग़ज़ल इक साथ फिरसे..
पर इस वक़्त नहीं ,क्यूंकि 
आज बहुत व्यस्त हूँ
खो गयी थी जाने कब से 
पुरानी सी कई कहानियाँ
उन्हें ही ढूंढ रही हूँ
कई सारी धरोहरे 
कई सारी अमानते
आज तो ढूंढनी ही है
ठान लिया है मैंने 
और इसी धुन में मस्त हूँ... 
 
