बेटियां धान की पौध जैसी होती हैं
कहीं उगती है,उखाड़ी जाती है
कही और लगायी जाती हैं
अपनी जमीन से जुदा हो के भी
अपनी उर्वरता कहाँ खोती हैं
बेटियां धान की पौध जैसी होती हैं
दूसरी जमीन को भी अपना लेती हैं
देके अपना सर्वस्व सब को सुख देती हैं
बस चाहती हैं थोडा सा स्नेह
और कहाँ किसी से कुछ लेती हैं
बेटियां धान की पौध जैसी होती हैं
दूजे घर में बस जाती है खुशबु जैसी
अपनी पहचान हंस के खोती हैं
छोड़ती है जब अपना घर आंगन
हंसते हैं लब,आँख बहुत रोती है
बेटियाँ धान की पौध जैसी होती हैं.........