सम्भवतः आजकल मेरी सोच
पर भी लग गया है ग्रहण
अथवा थम गयी है गति
ह्रदय के स्पंदन की ....
मस्तिष्क का दिन-रात
सोचना कहाँ गया ?
जम गयी है संवेदनाये
तभी तो न कोई विचार
न कोई अभिव्यक्ति न ही
कोई विरोध दर्ज कर रही हूँ
जबकि कितना कुछ घट रहा है
आस-पास ,बिलकुल मेरे सामने
और मैं मौन हूँ ,
किस तरह हर बात पर
भड़क उठती थी, कितने
सवाल मथते थे,कितनी
उन्मादिनी हो उठती थी
शब्दों की नदी घुमड़ उठती थी
किन्तु अब सब शांत है ,और
मैं उलझी हूँ इसी उहापोह में
आखिर हुआ क्या है ?
ठीक-ठीक पता नहीं चल रहा
क्या कोई सुलझा पायेगा ये गुत्थी ......(आशा)
पर भी लग गया है ग्रहण
अथवा थम गयी है गति
ह्रदय के स्पंदन की ....
मस्तिष्क का दिन-रात
सोचना कहाँ गया ?
जम गयी है संवेदनाये
तभी तो न कोई विचार
न कोई अभिव्यक्ति न ही
कोई विरोध दर्ज कर रही हूँ
जबकि कितना कुछ घट रहा है
आस-पास ,बिलकुल मेरे सामने
और मैं मौन हूँ ,
किस तरह हर बात पर
भड़क उठती थी, कितने
सवाल मथते थे,कितनी
उन्मादिनी हो उठती थी
शब्दों की नदी घुमड़ उठती थी
किन्तु अब सब शांत है ,और
मैं उलझी हूँ इसी उहापोह में
आखिर हुआ क्या है ?
ठीक-ठीक पता नहीं चल रहा
क्या कोई सुलझा पायेगा ये गुत्थी ......(आशा)