बुधवार, 18 मई 2011

उजली सुबह.........

मेरे बेहिसाब सवाल यूँ उड़ गए 
तुम्हारी एक चुप की आंधी में,
ज्यूँ हवा में अक्सर उड़ जाया करते हैं 
सूखे घास के तिनके,कागज़ की चिंन्दियाँ

होंठों से बहती गीतों की नदी
जाने कब से बहना भूल गयी
अब अक्सर बहा करते हैं 
आँखों से  नमकीन झरने

फिर भी बेसाख्ता दिल धड़क ही जाता है
कम्बखत भूलता ही नहीं नाम तेरा
हर वक़्त तेरे ही कलाम गुनगुनाता है
सच है दिल पे किसी का जोर नहीं

ख्वाब अब अक्सर आते है
ज्यूँ रेतीले अंधड़....
उनसे छुपने की खातिर
कब से नहीं सोयी आँखे

फिर भी कहीं दूर से आता
ठंडी पवन का झोंखा
सहला गया जख्मो को
दे गया दिलासा दिल को
मत घबरा रात बस ढलने को है
वो दूर आ रही है एक उजली सुबह.........

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