टीस सी उठती रही रह-रह कर
रिसती रही पलके,छलकता रहा
दर्द का दरिया .....
यादों का खंज़र कुरेदता रहा
दिल की हर परत,तेरी शरारतें,
अठखेलियाँ,तेरी मुस्कान और
धीरे से कहना चची- जान,
धड़कनों में बजती रही तेरी आवाज़......
खामोश सिसकियाँ,थर्राती रही
मजबूर साँसे फिर भी चलती रही
रात भी थोड़ी सहमी सी थी
जैसे उसे भी डस गया था
तेरे जाने का ग़म .....
जानता है क्या कितने दिन हुए
तू सो गया बेखबर,बेसुध,और
जगती रही कई जोड़ी आखें
कई रातों तक तेरे जगने की
राह देखती रही,आस का दिया जलाए ......
पर आज अजब रात आई है
जाग तो आज भी रही हैं दर्ज़नो आँखें
तेरे लिए रात भर लेकिन बिना कोई आस,
ख़त्म हो गया हर-एक- इंतजार .....
चमकीला सूरज फिर आया
लेकिन मेरे घर का अँधेरा
जस का तस….बल्कि थोड़ा गहराया सा-----
और सुबह एक दम रीती खुरदरी ......
बिदाई की बेला जो है,आँख फिर पिघल रही है ..... (आशा)
wah ! marmik rachna....dil mey tis si uthti hai padh kar
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक रचना, दर्द जैसे पिघल पिघर कर रिस रही.
जवाब देंहटाएंरेवा जी, जेन्नी दी, अभी हाल ही में 14 मई 2013 को हमारा जवान भतीजा हमें छोड़ गया ....बस वही दुःख मुखर हो कर शब्दों में बिखर गया ....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएं@मेरी बेटी शाम्भवी का कविता-पाठ