शनिवार, 14 अगस्त 2010

जाने क्यूँ बारिश की बूंदे

जाने क्यूँ बारिश की बूंदे
दीवाना कर देती है मुझे
जैसे ही बादल घिरते है
पागल सी हो जाती हूँ
निकल पड़ती हूँ,जाने क्यूँ
सारे काम धाम भूल समेटने
आंगन में गिरती बूंदों को
और खो जाती हूँ रिमझिम फुहारों में
एक नशा सा तारी रहता है
भूल जाती हूँ सब कुछ
अच्छा-बुरा,सही-गलत,
झूम उठती हूँ,बौरा जाती हूँ..
जाने क्यूँ बारिश की बूंदे
दीवाना कर देती है मुझे
सब कहते है अब क्या बच्ची हो?
उन्हें कैसे समझाउं,दिल का बचपना
जो कभी गया ही नहीं,या जाने नहीं दिया
आज भी वो अल्हड,नटखट लड़की
जीती है,दिल के किसी कोने में
जो भीगना चाहती है,तब तक
जब तक बादल का दामन खाली न हो जाये
छप-छप करना चाहती है,जमा हुए पानी में
कागज़ की नाव भी तैराना चाहती है
भरना चाहती है अपनी अंजुरी में आसमान
आँखों से पी लेना चाहती हूँ
जाने क्यूँ बारिश की बूंदे
दीवाना कर देती है मुझे..

6 टिप्‍पणियां:

  1. bahut hi umda kavita..
    shukriya aapka humare saath share karne k liye..

    Meri Nayi Kavita aapke Comments ka intzar Kar Rahi hai.....

    A Silent Silence : Ye Kya Takdir Hai...

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  2. बहुत सुंदर और बहुत खूब
    विशेष:
    जो भीगना चाहती है, तब तक
    जब तक बादल का दामन खाली न हो जाये

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  3. जाने क्यूँ बारिश की बूंदे
    दीवाना कर देती है मुझे
    *****सावन के इस सुहानेमौसम में यह कविता पढ़ कर लगा की यह सवाल तो मै भी अपने आप से करता रहता हूँ मुझे भी बरसात का मौसम बहुत अच्छा लगता है यह सृजन का मौसम होता है
    आपकी लेखनी बहुत दमदार है लिखते रहिये

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  4. Huuuun ! to aapane apne andar ki bachhi ko vaarish men jee-bhar bhigane diyaa hogaa n is baar. Behatareen ahsaas, pyaaraa saa shabd sanyojan, komal saa shilp......

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  5. ji kaushlendra ji...bahut jam ke bheegi wo natkhat is baar.....aap ka bahut shukriya....

    जवाब देंहटाएं

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