ज़िक्र मेरा था अफ़साना भी मेरा
फिर भी नदारद था फ़साना मेरा
शोहरात का क़िस्सा बड़ा ज़ालिम है
आज जो तेरा है वो कभी था मेरा
जिसकी हसरत में मारे मारे फिरते हो
वो बेवफ़ा कभी हमदर्द था मेरा
छांव में जिसकी तुझको सुकून मिलता है
ग़ौर से देख ज़रा वो दामन है मेरा. ....(आशा)
फिर भी नदारद था फ़साना मेरा
शोहरात का क़िस्सा बड़ा ज़ालिम है
आज जो तेरा है वो कभी था मेरा
जिसकी हसरत में मारे मारे फिरते हो
वो बेवफ़ा कभी हमदर्द था मेरा
छांव में जिसकी तुझको सुकून मिलता है
ग़ौर से देख ज़रा वो दामन है मेरा. ....(आशा)
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