आँखों में इक सुरूर था
हुआ तो कुछ ज़रूर था
लहक रही थी वादियाँ
मौसम भी कुछ मग़रूर था |
धुप थोड़ी ज़र्द थी
हवा भी थोड़ी सर्द थी
कंधे तेरा हाथ था
नया नया वो साथ था |
वादियाँ खिली सी थी
औंस से धुली सी थी
खोए से थे तुम और मैं
बस धड़कनो का शोर था||
अफ़साने यूँ तो हज़ार थे
सुनने से कब गुरेज़ था
महक सी थी फ़िज़ाओं में
दिल इश्क़ से लबरेज़ था
न वक़्त की थी बंदिशें
न ज़िन्दगी मुश्किलें
न फ़िक्र नून तेल की
न ज़िक्र किसी और का
लबों पे बस तेरी बात थी
तू मेरे,मैं तेरे साथ थी
जब बने थे हमसफ़र
ये उन दिनों की बात है....(आशा)
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