नमक तनहाइयों का काट रहा
धीरे धीरे इमारत-ऐ-ज़िंदगी
उम्र की परतें यूँ चढ़ रही है
नए मायने जीने के गढ़ रही हैं......(आशा)
धीरे धीरे इमारत-ऐ-ज़िंदगी
उम्र की परतें यूँ चढ़ रही है
नए मायने जीने के गढ़ रही हैं......(आशा)
खुद में मस्त हूँ,मलँग हूँ मैं मुझको बहुत पसंद हूँ बनावट से बहुत दूर हूँ सूफियाना सी तबियत है रेशम में ज्यूँ पैबंद हूँ... ये दिल मचलता है क...
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