बेतहाशा भागती दौड़ती ज़िंदगी
हर वक्त बस हसरतों का शोर है
बस रफ़्तार मायने रखती है
इक अजब तमाशा हर ओर है
हर शक़्श परेशां, हर शक्ल बेनूर है
बनावटी मुखोटों में सिसकती रूह
लबों पे चस्पा मुस्कुराहट ज़रूर है
पैरों में रवायतों की बेड़ियाँ है पड़ी
रुख़ ऐ रोशन पे दमकता नूर है
नसीहतों का गर्म है बाज़ार
बे-अदबी ख़्वाबों की बा-दस्तूर है
ऐसे में जब कभी कहीं दिखता है
ठहरा सा पानी, घनी छाँव, ठंडी हवा
दो पल सकूँ के गुज़ारने को मचलता है दिल
रुकने सी लगती है रफ़्तार
और महसूस होता है यूँ
बाक़ी है अभी भी थोड़ी सी ज़िंदगी…(आशा)
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