खुद में मस्त हूँ,मलँग हूँ
मैं मुझको बहुत पसंद हूँ
बनावट से बहुत दूर हूँ
सूफियाना सी तबियत है
रेशम में ज्यूँ पैबंद हूँ...
यूँही जब किसीकी हसरत में
रंग ओ आब सज़ा लेती हूँ
फिर भी नज़र बेनूर सी यूँ
भटकती है सहरा मैं
कोई देखे हज़ार बार मुड़के
फिर भी कहाँ जँचती हूँ
सूरत भी तो संजीदा है
यूँ हर हुनर पोशिदा है
फिर भी फ़िक्रमंद हूँ...
नज़रों में नहीं चढ़ती हूँ
फिर भी आगे बढ़ती हूँ
बेख़ौफ़ हूँ,बेबाक़ हूँ
बेफ़िक्र हूँ, बेढंग हूँ...
सबको जो पसंद है
सब जिस पे रज़ामंद हैं
वो मुझको नादीदा है
मेरा ढंग ही बोशीदा है
बहुत सी हैं पेचीदिकियाँ
मेरे किरदार में यारो
सब जब्ब कर लेती हूँ
सोज़ हो सब्ज़ हो या
नक़्श की बारिकियाँ
सह नहीं पाते ताब मेरा
सबसे अलग है, आब मेरा
बस इतना सा लब्बो लुआब
चालाकियाँ नहीं आती
कफ़स है मंज़ूर मोहब्बत में
हासिद की महफ़िल से
बेदिल, बेज़ार हूँ मैं
दोस्तों को है पसंद
रंगीनियाँ रक़ीबों की
मैं खुश हूँ तनहाँ, क्यूँकि
मैं सादगी पसंद हूँ……(आशा)