बुधवार, 8 जुलाई 2020

वक़्त

उड़ जाता है,जाने कैसे फ़ुर्र
क्या वक़्त के पँख होते हैं,
हैरान तकती हुँ, ढूँढती हूँ
पर हाथ नही कुछ आता
बस भौचक रह जाती हुँ
पकड़ना चाहती हूँ इसे
पर क्या पकड़ूँ, और कैसे
ना वक़्त दिखता है,ना उसके पँख...(आशा)


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैं...

  खुद में मस्त हूँ,मलँग हूँ मैं मुझको बहुत पसंद हूँ बनावट से बहुत दूर हूँ सूफियाना सी तबियत है रेशम में ज्यूँ पैबंद हूँ... ये दिल मचलता है क...