तोड़ डालो चाहे तुम किसी रोज़
गुल को शाख़ से झटक कर
क्या छीन पाओगे उसकी महक?
नोच डालो चाहे एक एक पंखुड़ी
ख़त्म कर डालो वजूद उसका
क्या कम होगी उसकी रंग-ओ-आब?
नहीं कुछ नहीं कर पाओगे तुम
अपने ग़ुरूर को सहलाने के सिवा,
बल्क़िन वो महका जाएगा यूँही
तुम्हारी उँगलियाँ,रंग जाएगा
और फिर तुम्हारे पास रह जाएगा
बस एक पछतावा....(आशा)
गुल को शाख़ से झटक कर
क्या छीन पाओगे उसकी महक?
नोच डालो चाहे एक एक पंखुड़ी
ख़त्म कर डालो वजूद उसका
क्या कम होगी उसकी रंग-ओ-आब?
नहीं कुछ नहीं कर पाओगे तुम
अपने ग़ुरूर को सहलाने के सिवा,
बल्क़िन वो महका जाएगा यूँही
तुम्हारी उँगलियाँ,रंग जाएगा
और फिर तुम्हारे पास रह जाएगा
बस एक पछतावा....(आशा)
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