बुधवार, 8 जुलाई 2020

माँ

माँ वाक़िफ़ है रग रग से
समझती है हर कारगुज़ारी
वो भोली, नादान नहीं होती
जितना तुम समझते हो,
उतनीअनजान नहीं होती।
चुप रहती है देख कर भी
सभी नदानियाँ तुम्हारी,
जितना भी तुम छुपा लो,
वो सब जान लेती है।
शैतानियों से तुम्हारी
वो पशेमान नहीं होती
डाँटेगी,डपटेगी,डराएगी
कभी उमेठेगी कान भी
सहला देगी फिर माथा
प्यार से पुचकार भी लेगी।
बस यूँही बिन बात कभी
परेशान नहीं होती।
माँ वाक़िफ़ है रग रग से तुम्हारी(आशा

1 टिप्पणी:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 09 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं

मैं...

  खुद में मस्त हूँ,मलँग हूँ मैं मुझको बहुत पसंद हूँ बनावट से बहुत दूर हूँ सूफियाना सी तबियत है रेशम में ज्यूँ पैबंद हूँ... ये दिल मचलता है क...