माँ वाक़िफ़ है रग रग से 
समझती है हर कारगुज़ारी
वो भोली, नादान नहीं होती
जितना तुम समझते हो,
उतनीअनजान नहीं होती। 
चुप रहती है देख कर भी 
सभी नदानियाँ तुम्हारी,
जितना भी तुम छुपा लो,
वो सब जान लेती है।
शैतानियों से तुम्हारी 
वो पशेमान नहीं होती
डाँटेगी,डपटेगी,डराएगी
कभी उमेठेगी कान भी 
सहला देगी फिर माथा 
प्यार से पुचकार भी लेगी।
बस यूँही बिन बात कभी 
परेशान नहीं होती।
माँ वाक़िफ़ है रग रग से तुम्हारी(आशा
