धूप का इक उजला सा टुकड़ा
आंगन में उतरा चुपके से
आँख का आंसू मोती बनके
गालो पर ढलका चुपके से
फूलों की खुशबु ले हवा चली,
चली मगर बिलकुल चुपके से
भवरो ने भी रस की गागर
छलकायी लेकिन चुपके से
मन का पंछी दूर गगन में
उड़ता फिरता,पर चुपके से
मेरे नैना तुझको तकते,
बने चकोर मगर चुपके से
तेरी यादे रहती संग में
हरदम करती तंग चुपके से
राते तारे गिन-गिन काटी
चाँद जला संग में चुपके से
बादल के संग आँखे रोई
सावन भी रोया चुपके से
हमने तेरी हर बात कही
रातो में तकिये को चुपके से
तू क्या रातों को सोता है?
जाग रही हूँ मै चुपके से
नींद अगर आएगी मुझको
तुम तब ख्वाबो में आना,सुनो मगर आना चुपके से....
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सुंदर भावपूर्ण रचना लिखा है आपने...बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता ....चुपके से :):)
जवाब देंहटाएंकृपया कमेंट्स से वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें ..टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .
अति सुन्दर भावना है आशा जी जज्बे को सलाम |
जवाब देंहटाएंchupke se aapne itna shor macha diya
जवाब देंहटाएंfri dhire se kehti hain ki, jara chupke se
bahut abhut sundar kirti
asha ji
जवाब देंहटाएंtasvir jo lagayi hai aapne iski aankhen hipnotised karti hai ... ye aapki tasvir to nahi hai naa?
aapki pasand ka javab nahi laajavab
kavita ka pravaah bahut hi accha hai
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 28 - 9 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
जवाब देंहटाएंकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत सुन्दर भाव
जवाब देंहटाएंचुपके -चुपके से बड़ी प्यारी सी कविता रच दी ...!
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंwow di chupke se nei itni hulchul macha rakhi hai sach mai aap aur aapki itni sundar aur bhavpudh kavita ko padhkar kyoi bhi bhavuk to hoga hi.....great
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर लेखनी है दी आपकी, लिखती रहें
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