सोमवार, 22 अगस्त 2022

मैं...

 खुद में मस्त हूँ,मलँग हूँ

मैं मुझको बहुत पसंद हूँ
बनावट से बहुत दूर हूँ
सूफियाना सी तबियत है
रेशम में ज्यूँ पैबंद हूँ...

ये दिल मचलता है कभी
यूँही जब किसीकी हसरत में
रंग ओ आब सज़ा लेती हूँ
फिर भी नज़र बेनूर सी यूँ
भटकती है सहरा मैं
कोई देखे हज़ार बार मुड़के
फिर भी कहाँ जँचती हूँ
सूरत भी तो संजीदा है
यूँ हर हुनर पोशिदा है
फिर भी फ़िक्रमंद हूँ...
नज़रों में नहीं चढ़ती हूँ
फिर भी आगे बढ़ती हूँ
बेख़ौफ़ हूँ,बेबाक़ हूँ
बेफ़िक्र हूँ, बेढंग हूँ...
सबको जो पसंद है
सब जिस पे रज़ामंद हैं
वो मुझको नादीदा है
मेरा ढंग ही बोशीदा है
बहुत सी हैं पेचीदिकियाँ
मेरे किरदार में यारो
सब जब्ब कर लेती हूँ
सोज़ हो सब्ज़ हो या
नक़्श की बारिकियाँ
सह नहीं पाते ताब मेरा
सबसे अलग है, आब मेरा
बस इतना सा लब्बो लुआब
चालाकियाँ नहीं आती
कफ़स है मंज़ूर मोहब्बत में
हासिद की महफ़िल से
बेदिल, बेज़ार हूँ मैं
दोस्तों को है पसंद
रंगीनियाँ रक़ीबों की
मैं खुश हूँ तनहाँ, क्यूँकि
मैं सादगी पसंद हूँ……(आशा)

रफ़्तार


बेतहाशा भागती दौड़ती ज़िंदगी
हर वक्त बस हसरतों का शोर है
बस रफ़्तार मायने रखती है
इक अजब तमाशा हर ओर है
ख़्वाहिशों का लगा है मज़मा
हर शक़्श परेशां, हर शक्ल बेनूर है
बनावटी मुखोटों में सिसकती रूह
लबों पे चस्पा मुस्कुराहट ज़रूर है
पैरों में रवायतों की बेड़ियाँ है पड़ी
रुख़ ऐ रोशन पे दमकता नूर है
नसीहतों का गर्म है बाज़ार
बे-अदबी ख़्वाबों की बा-दस्तूर है
ऐसे में जब कभी कहीं दिखता है
ठहरा सा पानी, घनी छाँव, ठंडी हवा
दो पल सकूँ के गुज़ारने को मचलता है दिल
रुकने सी लगती है रफ़्तार
और महसूस होता है यूँ
बाक़ी है अभी भी थोड़ी सी ज़िंदगी…(आशा)

शनिवार, 20 अगस्त 2022

करिश्मा


झूठ को सच,सच को झूठ बना दे
खुली आँखों को नया ख़्वाब दिखा दे
भूल जाए गुस्ताखियाँ,ज्यूँ हुई ही ना हों
ऐ ख़ुदा इतना बेग़ैरत, बेज़ार बना दे
ज़िस्त से हट गई है तबियत बेसाख़्ता
सकूँ भरी हो जिसमें नींद,पर ख़्वाब गुम हों
ऐसी कोई सितारों भरी तू रात बना दे….(आशा)

सुना है तुमने सब कुछ सम्भाल रक्खा है


सुना है तुमने सब कुछ सम्भाल रक्खा है
टूटे ख़्वाब,बिखरी यादें,
कुछ सोई सी ख्वाहिशें
दर्द की वो नागफनी
जो लिपटी थी सीने
सबको क़रीने से सजाके,
बंद बोतल में डाल रखा है
सुना है तुमने सब कुछ सम्भाल रक्खा है…
चुभती थी जो करिचें
पाँव में अक्सर यूँही
डर सा लगता था
दो कदम भी चलने में
समेट कर उनको तुमने
चमचमाते नायाब नए
नगीनों में ढाल रक्खा है
सुना है तमने सब कुछ सम्भाल रक्खा है…
आँख में भरी थी जो
रेत सी बेवफ़ाई की
सामने तस्वीर बेहयाई की
ज़ुल्फ़ कांधे पे गिरती थी
वो पराई थी,उफ़्फ़ ख़ुदा
ये क्या आशनाई थी
बना के उनका मुजस्सिम
तुमने क्या कमाल किया
आजको क्यूँ कल पे टाल रक्खा है
सुना है तुमने सब कुछ सम्भाल रक्खा है…(आशा)

शुक्रवार, 19 अगस्त 2022

शिवा


जाने कितने ही युगों से
कालकूट हंस कर पी रही हूँ,
सती नहीं,जो खुद को मिटा दूँ
मैं शिव बन कर जी रही हूँ।
विष भी मिला, मिले विषधर भी
पर नीलकंठ का ना मान मिला,
बिन जाने, बिन पूछे मुझको
बलिदानों का सोपान मिला।
फटी हुई मन की चादर को
प्रेम के धागे से सी रही हूँ,
अश्रुओं को अमृत बना
अंजुली भर पी रही हूँ।
जाने कितने भस्मासूरों को
अनजाने ही वरदान दिए,
जाने कितने स्वर्ण महल
कृतघ्नों को यूँ ही दान दिए।
बैठ कर जलती चिता पर
आग हंस कर पी रही हूँ
शव नहीं हूँ, मैं शिवा हूँ
विष अहिर्निश पी रही हूँ।
निर्द्वंद्व, निर्भय निर्लिप्त हो
मैं धरा पर फिर रही हूँ
शांत शाश्वत स्नेह निर्मित
अपनी ही जटा में घिर रही हूँ
तांडव मेरा है प्रलयंकारी
भस्म कर दे सृष्टि सारी,किंतु,
क्रोध मेरा परिमेय कब था?
विनाश मेरा धेय कब था?
मैं धरा को थाम कर
सृष्टा बन चल रही हूँ।
मृदा,अग्नि,जल,वायु,गगन
पंचतत्व में मैं ढल रही हूँ ।
जाने कितने ही युगों से
कालकूट हंस कर पी रही हूँ,
सती नहीं,जो खुद को मिटा दूँ
मैं शिव बन कर जी रही हूँ…(आशा)

बुधवार, 8 जुलाई 2020

माँ

माँ वाक़िफ़ है रग रग से
समझती है हर कारगुज़ारी
वो भोली, नादान नहीं होती
जितना तुम समझते हो,
उतनीअनजान नहीं होती।
चुप रहती है देख कर भी
सभी नदानियाँ तुम्हारी,
जितना भी तुम छुपा लो,
वो सब जान लेती है।
शैतानियों से तुम्हारी
वो पशेमान नहीं होती
डाँटेगी,डपटेगी,डराएगी
कभी उमेठेगी कान भी
सहला देगी फिर माथा
प्यार से पुचकार भी लेगी।
बस यूँही बिन बात कभी
परेशान नहीं होती।
माँ वाक़िफ़ है रग रग से तुम्हारी(आशा

वक़्त

उड़ जाता है,जाने कैसे फ़ुर्र
क्या वक़्त के पँख होते हैं,
हैरान तकती हुँ, ढूँढती हूँ
पर हाथ नही कुछ आता
बस भौचक रह जाती हुँ
पकड़ना चाहती हूँ इसे
पर क्या पकड़ूँ, और कैसे
ना वक़्त दिखता है,ना उसके पँख...(आशा)


मैं...

  खुद में मस्त हूँ,मलँग हूँ मैं मुझको बहुत पसंद हूँ बनावट से बहुत दूर हूँ सूफियाना सी तबियत है रेशम में ज्यूँ पैबंद हूँ... ये दिल मचलता है क...