अक्सर शाम ढले अपने आँगन में
जलाती हूँ एक दिया अरमानो का
सुबह होते होते खुद ही बुझा देती हूँ
चाँद के साथ उठती है एक हसरत जो
देके थपकी उसे अल-सुबह सुला देती हूँ .....
ख्वाब अब नहीं आते बुलाने से भी
कितने बहानो से तेरी याद बुला लेती हूँ
नींद आँखों से छुपती फिरती है जब
तेरी तस्वीर को सिरहाना बना लेती हूँ
जलाती हूँ एक दिया अरमानो का
सुबह होते होते खुद ही बुझा देती हूँ
चाँद के साथ उठती है एक हसरत जो
देके थपकी उसे अल-सुबह सुला देती हूँ .....
ख्वाब अब नहीं आते बुलाने से भी
कितने बहानो से तेरी याद बुला लेती हूँ
नींद आँखों से छुपती फिरती है जब
तेरी तस्वीर को सिरहाना बना लेती हूँ
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