मंगलवार, 13 नवंबर 2018

ख़ामोश रात

ये रात भी क्या रात थी
ज़मीन हमसे  दूर थी
अजब ग़ज़ब सी बात थी
हवा का रूख नरम सा था
ना सर्द ना गरम सा था
चाँद आस पास था
ख़ामोश मगर बोलता
धड़कनो का साज़ था
मय कभी चखी नहीं
कोई तलब रखी नहीं
फिर भी इक सुरुर था
हुआ तो कुछ ज़रूर था
तनहा सफ़र में डोलती
नज़र तुझे थी बस ढूँढती
तू दूर फिर भी पास था
एहसास  कितना ख़ास था
मैं आज आसमां में थी
ज़मीं पर तारों का राज था .....(आशा)

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