एक दिन रोक के रास्ता सूरज का,धीमे से
मैंने कहा,एक बात कहूँ बुरा तो न मानोगे
क्यूँ नहीं थोडा बैठ लेते इस बरगद कि छाँव
थोड़ी ही दूर पे है मेरा भी गाँव,रुको
कुछ देर बतिया लो बहुत चलते हो
थक गए होगे,न हो तो थोडा सुस्ता लो
सूरज हंसा और बोला,तुम्हारा शुक्रिया
पर रुक नहीं पाउँगा,मैने फिर से पूछा,
सूरज क्या थकता नहीं कभी तू
कभी नहीं चाहता तेरा मन कि,
आज घर बैठूं थोडा सुस्ता लूँ
चलो आज छुट्टी मै भी मना लूँ??
कभी तो थकता होगा तू भी
अपनी इस अनवरत यात्रा से
कभी तो तेरे घोड़े भी देखते होंगे
आशा भरी दृष्टि से तेरी ओर…
थोडा सा रुकने सुस्ताने को मन नहीं करता क्या?
सुन क्या तेरे घरवाले कभी नहीं चाहते
के तू उनके साथ बिताये पल चार
कोई बात कहे मीठी सी,बच्चो को करे प्यार
सुन के सूरज मुस्काया और बोला
मन कि छोडो,उसकी तो अपार है माया
उसकी लगा सुनाने तो कुछ नहीं हो पायेगा
इतने सालो से जो चल रहा है,मेरा तप टूट जायेगा.
अगर मै रुक गया तो धरती भी रुक जाएगी
रुक जायेंगे ये रात दिन,मौसम,ऋतुये
तब तुम सब कहाँ ठोर पाओगे
अपने लिए नहीं सदैव तुम्हारे लिए चलता हूँ
सर्दी हो या गर्मी बस परोपकार के लिए ही जलता हूँ
सूरज हूँ मै, चलना और जलना यही मेरी नियति है
हम सब को जो चलाती है,सबकी माँ प्रकृति है
अपनी मा के नियम नहीं तोड़ सकता
कुछ भी हो चलना नहीं छोड़ सकता……
सोमवार, 6 सितंबर 2010
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