सोमवार, 6 सितंबर 2010

दिल के शहर में आज………

दिल के शहर में आज


बरसी नयनो की बदरी

सूखा ख़तम हो गया

सब धुला धुला साफ़ साफ़

सब का किया धरा दिल से माफ़

काट छाँट रही हूँ,खरपतवार

चुन चुन के फ़ेंक रही हूँ सारे

गिले, शिकवे, शिकायतें

और तोड़ दी नफरतों की दिवार

अब हसरतों ने नयी शक्ल इख़्तियार की है

सपनों की नयी फसल हमने तैयार की है

एक नया आफताब टांग लिया

थोडा सा साफ़ आसमान मांग लिया

उजाले फिर से फैल गए

अब फूल खिलेंगे…….क्यूंकि,

दिल के शहर में आज

बरसी नयनो की बदरी

सूखा ख़तम हो गया

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