जब कभी होती है फुर्सत,
और दिल में होता है सकूँ
सोचती हूँ यूँ ही अक्सर
जो हुआ, जो भी हुआ,वो
क्यों हुआ, क्यूँकर हुआ
हमतो चले थे तनहा घर से
ये साथ कारवां -ऐ- सफर
कैसे हुआ क्यूँकर हुआ।
रंजिशें ज़माने ने पाली बहुत सवाल
अपनी धुन में रहे मदमस्त
बेफ़िक्र हम जीते रहे
सोचते है अब,यूँही कभी
इक उम्र गुजर जाने के बाद
अपना यहाँ गुजरो-बसर
कैसे हुआ, क्यूँकर हुआ।
कुफ्र से तोबा करुं ,कैसे करूँ ,
हो ही जाती है ख़ताएँ अक्सर
इन्सां हूँ कोई फ़रिश्ता मैं नहीं
फिर भी सर झुकता है सज़दे में
अब ये बात और है, बन्दग़ी का
यूँ मुझ पर असर हो तो गया पर
कैसे हुआ, क्यों कर हुआ।
डूब जाएँ वो के जो
जीने से आज़िज़ आये हों
हम जियेंगे बेफिक्र जब तक
नब्ज़ ये धीमी न हो
मौत की आँखों में आखें
डाल पूछेंगे सवाल
ख़त्म सफर-ऐ -ज़िन्दगी
हो तो गया पर क्यूँकर हुआ....(आशा)
डूब जाएँ वो के जो
जीने से आज़िज़ आये हों
हम जियेंगे बेफिक्र जब तक
नब्ज़ ये धीमी न हो
मौत की आँखों में आखें
डाल पूछेंगे सवाल
ख़त्म सफर-ऐ -ज़िन्दगी
हो तो गया पर क्यूँकर हुआ....(आशा)
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