शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

जीवन धन

अगर कभी माँगना होता 
कोई वरदान मुझे तो सिवा तुम्हारे 
और क्या माँगती मैं ईश्वर से 
मेरे सारे पुण्यों का प्रतिफल तुम हो
जीवन की सबसे अनमोल धरोहर
मेरा कोहिनूर हो तुम,
आज ही के दिन मैं बनी थी माँ
जीना सीखा था फिरसे
और तबसे अबतक सिर्फ़
वक़्त बदला,पर मैं बस माँ ही रह गयी
तेरी नींद सोयी तेरी नींद जागती रही
तू हँसी तो मैं भी हँसी,बस तेरी ही
ख़ुशियाँ ईश्वर से माँगती रही,,
और अब ये हाल है मेरा के तुझसे अलग
मेरा वजूद दिखता ही नहीं मुझको,                                          
सुन मैं बताती हूँ,
मेरी आँखों में जो ये चमक है ना
वो तुम हो
मेरे होंठों की मुस्कान भी तुम हो
जो कभी कभी यूँही झूमने सी लगती हूँ ना
वो भी तो तेरी ही सोहबत में होता है,
जबसे तू आयी कहाँ ज़रूरत रही
के कोई हो सहेली, तू ही तो है मेरी हमराज़
मेरी हर उलझन, परेशानी का इलाज
मेरी वक़ील डॉक्टर शोपिंग पार्ट्नर
लड़ती भी हूँ तो तुझसे प्यार भी
तुझसे ही करती हूँ
ना हो यक़ीं तो पूछो ईशान से,
सुनो बहुत प्यारी लगती हो
जब लग जाती हो गले से
चूमती हो मुझे माँ कभी मौम्मी
कहती हो,
किसी अल्हड़ लता सी लिपटती हो
मुझसे
या यूँही अनजाने खींचती हो
मेरे गाल, अठखेलियाँ करती हो,
पता है किसी नटखट गुड़िया सी लगती हो
खींच कर आँचल में छुपा लेना चाहती हूँ
फिर से गोद में भर के चूमना चाहती हूँ
बेतहाशा तुम्हें
पर रुक जाती हूँ ,अब तुम बड़ी हो गयी हो
डॉक्टर साहिबा
लेकिन मेरा दिल ये मनाने को राज़ी ही नहीं होता
मुझे तो आज भी वही विभूति दिखती छोटी सी
दूर से अपनी बड़ी बड़ी काली आँखों से
मुझे देखती टुकुर टूकुर,
नीली लेस वाली फ़्राक़ में लिपटी
माँ फिर बलिहारी जाती है अपनी गुड़िया पर
पता है तुम्हें, हर साल इस दिन मैं फिर उन्ही लमहों को जीती हूँ
और ख़यालों में अपने फिर अपनी छोटी सी
नन्ही परी को थाम लेती हूँ
लगा लेती हूँ सीने से तुझे
जाने क्यूँ आँख भर आती है
फिर लरज उठता है आँचल मेरा
और मैं फिर मैं कहाँ रह जाती हूँ...(आशा)

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