शनिवार, 2 सितंबर 2017

बोलो ना .....

कुछ शबनमी ख्वाब,
खारे आंसू,मीठी हंसी 
कुछ शरारत,बांकपन
नजाकत थोड़ी,
थोड़ी नरमी,
नमी मोहब्बत की,
आँखों में छुपा रखी है,
बरसों से
निगेहबानी में तुम्हारी रहे
महफूज़ ये दौलत ता-उम्र
ये दिल की चाहत है......
बोलो क्या संभाल पाओगे?(आशा)


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैं...

  खुद में मस्त हूँ,मलँग हूँ मैं मुझको बहुत पसंद हूँ बनावट से बहुत दूर हूँ सूफियाना सी तबियत है रेशम में ज्यूँ पैबंद हूँ... ये दिल मचलता है क...