शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

चाँद................. रात

एक दिन अचानक चाँद खो गया
रात भौचक खड़ी थी,सन्नाटे ओढ़े
तारों में अज़ब सी खलबली  थी
सोचों में थे सब ये कैसे हो गया

चाँद रात से दिखा के बेरुखी
अमावस की चादर ओढ़ सो गया
अपनी चांदनी के उजाले समेटे
कहीं दूर,जा अंधेरो में खो गया

रात खामोश थी,ओंस के अश्क बहाती
अपनी गीली नज़रों से,देखती रही
चाँद का रूठना,और यूँ छुप जाना 
अपनी बेबसी पर कुछ और गहराती

चाँद को था यकीन, जब निकला था,
रात उस बिन रह न पायेगी
पकड़ कर बांह रोकेगी,हंस कर मनाएगी

इसी अहसास को थामे,वो घर छोड़ आया
रात के मासूम दिल को छन से तोड़ आया
लगाये सौ इलज़ाम,शिकायत लाख की
पर चाँद तुमने रात की कब परवाह की

कोई ना अब आवाज देता कहीं से
अकेला चाँद तन्हाई में रोता है
ढूँढता रहता है अपना वजूद हर पल
रात की याद में दामन भिगोता है

रात अब भी खड़ी है खामोश तारो को जलाये
चाँद की राह में अपनी पलकें बिछाए
लौटना खुद ही होगा चाँद को ये फैसला है
अकेली चल रही है दिल में पूरा हौसला है...



4 टिप्‍पणियां:

  1. रात अब भी खड़ी है खामोश तारो को जलाये
    चाँद की राह में अपनी पलकें बिछाए
    लौटना खुद ही होगा चाँद को ये फैसला है
    अकेली चल रही है दिल में पूरा हौसला है...


    बहुत खूबसूरत रचना ...

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  2. khoya khoya chaand, suna aasman
    kabhi to unki khabar aayegi
    by the aap bhi to eid ka chand ho rahe hain,
    kaha khoye hue hain!

    nice creation

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  3. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
    ..

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