कब कहा फूल ने माली से
बस मुझे ही सींचो,सम्भालो
भूल कर सारे चमन को
बस मुझे ही तुम निहारो
कब कहा पंछी ने डाली से
मुझे ही करने दो बसेरा
तेरी पात-पात पर बस
सदा रहे अधिकार मेरा
कब कहा किरणों ने सूरजसे
उजाले थाम लो,यूँ ना बिखेरो
ओट में बादल की छुप जाओ
आगोश में हमको भी लेलो
पर्वतो ने कब कहा नदियों से
दूर मुझसे तुम ना जाओ
गोद मेरी मेरी रहो महफूज
ना प्यास दुनिया की बुझाओ
कब कहा पेड़ो ने हवा से
तुम हो बस मेरी ही थाती
लहकती फिरती हो चहुँ ओर
पत्तियों में क्यूँ ना समाती
कब कहा मैंने तुम्हे,
बस मुझको ही चाहो
भूल जाओ सब को
बस मुझको सराहो
तुम प्रखर सूरज हो
कैसे तुमको छुपाउंगी
तुम हो झोखा हवा का
कैसे तुमको बांध पाउंगी
बंधन में कभी तुमको
रहना नहीं भाया
मगर क्यूँ भूल बैठे
मैं तुम्हारा ही हूँ साया
जहाँ भी तुम चलोगे
साथ मै भी आउंगी
कोई भी आये तूफान
साथ तेरा निभाउंगी
तुम मुझे चाहो ना चाहो
मै सदा तुमको,
बस तुम को ही चाहूंगी.......
Bahut hi sunder rachna, abhinandan. Hriday ko ek anokhi bhaav se bhar diya.
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen
बेहतरीन कविता लिखी है आपने , और बहुत सी सुंदर कविताओं के इंतेज़ार में .......!
जवाब देंहटाएंआशा जी ब्लॉग लिखना तो हर इन्सान की तमना होती है, परन्तु सभी की किस्मत साथ नहीं देती, आप का बहुत बहुत आभार, आप बिखरे हुए शव्दों को एकत्रित कर के कविता रूपी थाली में सजाकर, मन के फूल को एक महक दे रही है
जवाब देंहटाएंजहाँ भी तुम चलोगे
जवाब देंहटाएंसाथ मै भी आउंगी
कोई भी आये तूफान
साथ तेरा निभाउंगी
तुम मुझे चाहो ना चाहो
मै सदा तुमको,
बस तुम को ही चाहूंगी.......
bahut khubsurat rachna......
Really dis peom touches my heart....
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