कोहरे के घुघट में छिप कर
सांझ सलोनी कहाँ चली
किस से छुपती फिरती है
जाना तुझको कौन गली
चाँद पिया से मिलना तेरा
बहुत कठिन है अलबेली
उसको कब तेरी परवाह है
उसकी तो रात सहेली
डूबा रहता हरदम उसमे
ओढ़े तारों की चादर
तू नादान फिरे क्यूँ इत-उत
हो कर यूँ पगली,कातर
प्रेम तेरा कोई समझ न पाए
तू मीरा सी दीवानी
दर दर फिरती मारी मारी
ना अपनी न बेगानी.....
सांझ सलोनी कहाँ चली
किस से छुपती फिरती है
जाना तुझको कौन गली
चाँद पिया से मिलना तेरा
बहुत कठिन है अलबेली
उसको कब तेरी परवाह है
उसकी तो रात सहेली
डूबा रहता हरदम उसमे
ओढ़े तारों की चादर
तू नादान फिरे क्यूँ इत-उत
हो कर यूँ पगली,कातर
प्रेम तेरा कोई समझ न पाए
तू मीरा सी दीवानी
दर दर फिरती मारी मारी
ना अपनी न बेगानी.....
बहुत सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना, बधाई आशा जी.
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