स्वप्न सजे जिन आँखों में,तुम कैसे उनको मून्दोगी
प्रिय जब मै समीप न हूँ,सच कहना क्या तुम रो दोगी?
मोती जो ढलके गालों पर,उनका तुम हार बना लेना
जब वापस लौट के आऊं,जयमाल सा मुझे पहना देना
तेरी सारी पीड़ा को मै,ह्रदय में अपने छुपा लूँगा
अधरों पर तेरे बरबस ही मुस्कान के फूल खिला दूंगा..
तुम विरह को समझो तप अपना मै वरदानों सा आऊंगा
आंचल में तेरे दुनिया भर की खुशियाँ मै रख जाऊंगा…
बस कुछ दिन और प्रिये तुम को ये विरह की पीड़ा सहनी है
फिर तो जीवन भर जीवन में मधुमास की वेला रहनी है..