अब घर से निकलना हो गया है मुश्किल,
जाने कौन से मोड़ पर खडी है मौत……
दस्तक सी देती रहती है
हर वक्त दरवाजे पर,
हर वक्त दरवाजे पर,
पलकों के गिरने उठने की
जुम्बिश भी सिहरा देती है….
जुम्बिश भी सिहरा देती है….
धड़कने बजती है कानो में
हथगोलों की तरह,
हथगोलों की तरह,
हलकी आहटें भी थर्राती है जिगर ……
लेकिन जिन्दगी है के,
रुकने का नाम ही नहीं लेती,
रुकने का नाम ही नहीं लेती,
दहशतों के बाज़ार में
करते है सांसो का सौदा….
करते है सांसो का सौदा….
टूटती है, पर बिखरती नहीं
हर ठोकर पे संभलती है,
हर ठोकर पे संभलती है,
पर कब तक ??? कहाँ तक???????
क्यूंकि अब घर से निकलना हो गया मुश्किल
जाने कौन से मोड़ पे खडी है मौत……..
डर से जकड़ी है हवा,
दूर तक गूंजते है सन्नाटे…
दूर तक गूंजते है सन्नाटे…
खुदा के हाथ से छीन कर
मौत का कारोबार,
मौत का कारोबार,
खुद ही खुदा बन बैठे है लोग….
मुखौटों के तिल्लिस्म में
असली नकली कौन पहचाने
असली नकली कौन पहचाने
अपने बेगानों की पहचान में
ख़त्म हो रही है जिन्दगी …
ख़त्म हो रही है जिन्दगी …
अब लोग दूजों की
ख़ुशी में ही मुस्कुरा लेते है,
ख़ुशी में ही मुस्कुरा लेते है,
घर जले जो किसी का तो
,दिवाली मना लेते है….
,दिवाली मना लेते है….
खून से दूजों के खेल लेते है होली,
ओढ़ा कर नया कफन
किसी को वो ईद मना लेते है……..
किसी को वो ईद मना लेते है……..
क्यूंकि घर से निकलना हो गया है मुशकिल
जाने कौन से मोड़ पर खड़ी है मौत…..
हर एक चेहरे में कई चेहरे छिपे होते हैं
जवाब देंहटाएंजिसे देखो एक नहीं कई बार देखो
atisundar, so nice....kamaal kaa likha hai ..didi aapne...
जवाब देंहटाएंbahut bahut badhaai...