रविवार, 4 सितंबर 2011

जब तुम पास नहीं होते.....


सुनो,जब तुम पास नहीं होते
तब भी मेरे साथ ही होते हो

जैसे असमान के आगोश में
चाँद हमेशा कायम है,फिर
चाहे रोज़ दिखे न दिखे.....

हर वक़्त महसूस करती हूँ

जबअँधेरे घेरने लगते हैं,
सन्नाटे डराने लगते हैं
सूनापन डसता है नाग बनके
उसी वक्त याद तुम्हारी
तुम्हे पास मेरे ले आती है
और जगमगा जाता है
तेरे नूर से मेरा वजूद...


जब तुम पास नहीं होते
मेरी अमावस होती है,औ'
जब भी होती है अमावस
रात की गाढ़ी स्याही फैलती है
सारे आलम को आगोश में ले
अँधेरे के चाबुक चलाती है,
अपना साया भी तब पास
नहीं होता,बेगाना माहौल
जी कितना घबराता है,क्यूंकि
अमावस में चाँद नहीं दिखता

चाँद चाहे गुम हो अंधेरों में
तब भी उसका वजूद होता है...
चांदनी चाहे ना बिखेर पाए
तब भी वो वहीँ,मौजूद होता है....
ठीक उसी तरह जैसे तुम
पास हो या ना हो,शामिल होते हो,
मेरी हर साँस में बनके ख़ुश्बू
नस नस में बहता है लहू के संग
अहसास तुम्हारी मौजूदगी का
और फिर वो बेबस तन्हाई
अपना सा मुँह लेके रह जाती है...........................तन्हा,अकेली..


4 टिप्‍पणियां:

  1. पहली दफा आपके ब्लॉग पर आया हूँ.
    आपकी भावपूर्ण अभिव्यक्ति मन को अभिभूत कर रही है.
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.

    जवाब देंहटाएं
  2. सुनो,जब तुम पास नहीं होते
    तब भी मेरे साथ ही होते हो

    जैसे असमान के आगोश में
    चाँद हमेशा कायम है,फिर
    चाहे रोज़ दिखे न दिखे.....

    bahut sunder neh se bhari rachna, dil ko bahut apni si lagi.

    shubhkamnayen

    जवाब देंहटाएं
  3. शब्द-शब्द संवेदनाओं से भरी इस सार्थक रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी इस कविता मन को कही और ले कर चली गयी .. साथ न होकर भी साथ होना ही प्रेम है ..

    आपको बधाई !!
    आभार
    विजय
    -----------
    कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

    जवाब देंहटाएं

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