पंख कहाँ से मिलते हैं
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ASHA
अक्सर सोचती हूँ बैठे-बैठे
जाने क्यूँ इनकी उड़ाने
इतनी बेलोस होती हैं
जाने कितने इन्द्रधनुष
पार ये कर जाती है
कितने ही पर्वतों को
कदमो पे ले आती हैं
बड़ी बेखोफ़ होती हैं
हजारों रूप धरती हैं
कई नक़्शे बदलती है
कोई भी रोक ना पाए
कहाँ कब किसकी सुनती हैं
बड़ी मुहज़ोर होती हैं....
कभी बादल पे जा बैठें
कभी तैरें हवाओं में
संभाले ये ना संभले
उड़ जाये फिजाओं में
बड़ी बेफिक्र होती है..
समंदर की गहराई
या फलक की ऊँचाई
कहीं कुछ नहीं मुश्किल
जहाँ जी चाहे ये जाये
किसी के हाथ ना आये
बड़ी मदहोश होती हैं............
ASHA
आन्तरिक भावों के सहज प्रवाहमय सुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna. jivan ke kuchh kshan aise bhi hote hain jab kalpanaayen par laga kar jahaan chaahe ud jaati hain. bahut badhai Asha.
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