जिंदगानी की कहानी
कहो कैसे सुनाऊ?
रंग रूप इसका कैसे बताऊ?
कई रंग इसके,कई ढंग इसके
कहो किस तरह से तुम को दिखाऊं….
कभी रेल सी पटरी पे भागी जाती,
और बैलगाड़ी सी कभी रुकती
कभी चलती,हिचकोले खाती
मद्धम मद्धम चलती जा रही जिंदगी…
कभी सावन की रिमझिम फुहारों सी मदमस्त,
कभी बसंत की बयार सी शीतल,
तो कभी कभी जेठ के अंधड़ भी है जिंदगी…
नदिया की कलकल,झरनों की छम छम
सागर की कहानी,लहरों की जुबानी
तो कभी कभी बाढ़ का पानी भी है जिंदगी…..
कभी साफ़ असमान,कभी बादल घनेरे
कभी सूरज ,कभी चाँद ,कभी बस अँधेरे
उजाले कभी, कभी धुंध गहरी
कभी सर्द शामे,कभी तपती दुपहरी
अनोखी अदा से ये चल रही है,
पल पल रंग बदल रही है
अभी तक इसे मैंने जाना नहीं है
कहना कभी इसने माना नहीं है
करूं लाख कोशिश ये रूकती नहीं है..
मेरी जिद के आगे भी झुकती नहीं है..
अब तुम ही कहो कैसे इसको मनाऊं,
जिंदगानी की कहानी
कहो कैसे सुनाऊ?
pahli tippani dene ka avsar mila ye khushi ki baat hai
जवाब देंहटाएंyun to aapne prakriti mein zindgi ka aaina dikhaya hai ..or aaina hi to sach bolta hai
अभी तक इसे मैंने जाना नहीं है
कहना कभी इसने माना नहीं है
करूं लाख कोशिश ये रूकती नहीं है..
मेरी जिद के आगे भी झुकती नहीं है..
lekin in char panktiyon mein jo kashish hai vo yakinan laa javab hai ...shabd ,bhaav ,rytham har lihaaj se dilkash lagii ye char panktiyan
wow beautiful depiction of life !!!
जवाब देंहटाएंnicely crafted and expressed.
kafi sundarta se apane jindgi ko shandon me dhala hai, iske liey badhai!
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