बुधवार, 18 मई 2011

उजली सुबह.........

मेरे बेहिसाब सवाल यूँ उड़ गए 
तुम्हारी एक चुप की आंधी में,
ज्यूँ हवा में अक्सर उड़ जाया करते हैं 
सूखे घास के तिनके,कागज़ की चिंन्दियाँ

होंठों से बहती गीतों की नदी
जाने कब से बहना भूल गयी
अब अक्सर बहा करते हैं 
आँखों से  नमकीन झरने

फिर भी बेसाख्ता दिल धड़क ही जाता है
कम्बखत भूलता ही नहीं नाम तेरा
हर वक़्त तेरे ही कलाम गुनगुनाता है
सच है दिल पे किसी का जोर नहीं

ख्वाब अब अक्सर आते है
ज्यूँ रेतीले अंधड़....
उनसे छुपने की खातिर
कब से नहीं सोयी आँखे

फिर भी कहीं दूर से आता
ठंडी पवन का झोंखा
सहला गया जख्मो को
दे गया दिलासा दिल को
मत घबरा रात बस ढलने को है
वो दूर आ रही है एक उजली सुबह.........

बुधवार, 11 मई 2011

तुम को ही चाहूंगी.......

कब कहा फूल ने माली से
बस मुझे ही सींचो,सम्भालो
भूल कर सारे चमन को
बस मुझे ही तुम निहारो

कब कहा पंछी ने डाली से
मुझे ही करने दो बसेरा
तेरी पात-पात पर बस
सदा रहे अधिकार मेरा

कब कहा किरणों ने सूरजसे
उजाले थाम लो,यूँ ना बिखेरो
ओट में बादल की छुप जाओ 
आगोश में हमको भी लेलो

पर्वतो ने कब कहा नदियों से
दूर मुझसे तुम ना जाओ
गोद मेरी मेरी रहो महफूज
ना प्यास दुनिया की बुझाओ

कब कहा पेड़ो ने हवा से
तुम हो बस मेरी ही थाती
लहकती फिरती हो चहुँ ओर
पत्तियों में क्यूँ ना समाती

कब कहा मैंने तुम्हे,
बस मुझको ही चाहो 
भूल जाओ सब को
बस मुझको सराहो

तुम प्रखर सूरज हो
कैसे तुमको छुपाउंगी 
तुम हो झोखा  हवा का
कैसे तुमको बांध पाउंगी

बंधन में कभी तुमको 
रहना नहीं भाया
मगर क्यूँ भूल बैठे
मैं तुम्हारा ही हूँ साया

जहाँ भी तुम चलोगे 
साथ मै भी आउंगी
कोई भी आये तूफान 
साथ तेरा निभाउंगी
तुम मुझे चाहो ना चाहो 
मै सदा तुमको,
बस तुम को ही चाहूंगी.......





शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

चाँद................. रात

एक दिन अचानक चाँद खो गया
रात भौचक खड़ी थी,सन्नाटे ओढ़े
तारों में अज़ब सी खलबली  थी
सोचों में थे सब ये कैसे हो गया

चाँद रात से दिखा के बेरुखी
अमावस की चादर ओढ़ सो गया
अपनी चांदनी के उजाले समेटे
कहीं दूर,जा अंधेरो में खो गया

रात खामोश थी,ओंस के अश्क बहाती
अपनी गीली नज़रों से,देखती रही
चाँद का रूठना,और यूँ छुप जाना 
अपनी बेबसी पर कुछ और गहराती

चाँद को था यकीन, जब निकला था,
रात उस बिन रह न पायेगी
पकड़ कर बांह रोकेगी,हंस कर मनाएगी

इसी अहसास को थामे,वो घर छोड़ आया
रात के मासूम दिल को छन से तोड़ आया
लगाये सौ इलज़ाम,शिकायत लाख की
पर चाँद तुमने रात की कब परवाह की

कोई ना अब आवाज देता कहीं से
अकेला चाँद तन्हाई में रोता है
ढूँढता रहता है अपना वजूद हर पल
रात की याद में दामन भिगोता है

रात अब भी खड़ी है खामोश तारो को जलाये
चाँद की राह में अपनी पलकें बिछाए
लौटना खुद ही होगा चाँद को ये फैसला है
अकेली चल रही है दिल में पूरा हौसला है...



शनिवार, 5 मार्च 2011

सम्भावनाये…


सम्भावनाये तलाशती है राहे,
सफल होने की चाहे…
कीमत कोई भी हो चलेगी
पर सफलता तो मिलेगी…
भागती सड़के पथरीली निगाहे
भीढ़ के बीच पिसती चाहे…
बंद दरवाजों से झांकती
साथ किसी का मांगती
पिंजरे के पंछी की आहे
बेबस बचपन की मासूम निगाहें…
संसार का सूनापन झेलते
अपना बुढापा ठेलते
अकेलेपन का दंश झेलते
जी रहे दो बूढे शरीर
सूनी है उनकी निगाहे
कौन सुनेगा उनकी आहे…
मोहब्बत का नहीं है वक़्त
दौलत की हवस तारी है
जरुरत नहीं महबूब की
बस सिक्कों से यारी है
सूना है दिल, सूनी है बाहे
जाने क्या ढूंढती निगाहे
भटकता बचपन ढूंढता है
सकूं नशे के सीने में,
माँ बाप तलाश रहे
वैभव खून पसीने में
टूटा घर बिखरते रिश्ते
घुटती सांसे,दम तोड़ती आशाये
अंत फिर भी वही
सम्भावनाये तलाशती है राहे,
सफल होने की चाहे…

अब घर से निकलना हो गया है मुश्किल.............


 अब घर से निकलना हो गया है मुश्किल,
जाने कौन से मोड़ पर खडी है मौत…… 
दस्तक सी देती रहती है 
हर वक्त दरवाजे पर,
पलकों के गिरने उठने की
जुम्बिश भी सिहरा देती है….
धड़कने बजती है कानो में 
हथगोलों की तरह,
हलकी आहटें भी थर्राती है जिगर ……
लेकिन जिन्दगी है के,
रुकने का नाम ही नहीं लेती,
दहशतों के बाज़ार में
करते है सांसो का सौदा….
टूटती है, पर बिखरती नहीं 
हर ठोकर पे संभलती है,
पर कब तक ??? कहाँ तक???????
क्यूंकि अब घर से निकलना हो गया मुश्किल 
जाने कौन से मोड़ पे खडी है मौत……..

डर से जकड़ी है हवा,
दूर तक गूंजते है सन्नाटे…
खुदा के हाथ से छीन कर
 मौत का कारोबार, 
खुद ही खुदा बन बैठे है लोग….
मुखौटों के तिल्लिस्म में 
असली नकली कौन पहचाने
अपने बेगानों की पहचान में 
ख़त्म हो रही है जिन्दगी …
अब लोग दूजों की 
ख़ुशी में ही मुस्कुरा लेते है,
घर जले जो किसी का तो
,दिवाली मना लेते है….
खून से दूजों के खेल लेते है होली,
ओढ़ा कर नया कफन 
किसी को वो ईद मना लेते है……..
क्यूंकि घर से निकलना हो गया है मुशकिल 
जाने कौन से मोड़ पर खड़ी है मौत…..


शुक्रवार, 4 मार्च 2011

बदलती हवाएं...........

हवाओं ने रुख बदला है संभालो
अँधेरा चारों ओर देखो फ़ैल रहा है
जता दिया हमे बादल ने घुमड़ कर  
मौसम बदल रहा है,दिल डोल रहा है!!!

जागो अब अपनी सुध लो यारो  
पुराने सारे साए धुंधलाने लगे है
जिन ठूंठों के सहारे चढ़ रही थी
लहराती बेलें वो अब चटकने लगे हैं

सन्नाटे आगाज़ हैं नए तूफान के
समंदर भी भीतर भीतर खौल रहा है
गुलिस्तान उजड़ने की देहलीज़ पर है
उड़ गयी कोयले, शाखों पे उल्लू बोल रहा है

मजधार में नावों को डुबो रहा है माज़ी
घर को हमारे देखो कोतवाल लूट रहा है
किस पे करें भरोसा, कोई ये बताये
देखो जिधर हर कोई मुह मोड़ रहा है

दूर परदेश में छुपायी है दौलते
घर में है मुफलिसी ये कौन देख रहा है
हाकिम ही है बेबस जब अपने वतन में
अब कौन होगा रहनुमा दिल ये सोच रहा है...




 

बुधवार, 2 मार्च 2011

मेरी बिटिया....

सूने से आँगन में बैठी
जाने क्या देख रही थी मै
ठहरे पानी की झील में ज्यूँ 
कंकड़  फ़ेंक  रही थी मै

छम से आई एक परी
चमका एक सितारा धीरे से 
मीठी सी बोली में उसने
माँ मुझे पुकारा धीरे से 

उसकी मुस्कानों के मोती
जब बिखरे मेरे जीवन में
चटकी कलियाँ खुशियों की
मेरे मन के उपवन में

अज़ब गज़ब सी एक सिहरन
ठंडक सी पहुची सीने में
हलचल,हड़कंप मचा घर में
रफ़्तार सी आई जीने में

जादू था उसकी पलकों में
मै मन्त्र मुग्ध हो बैठ गयी
वो स्वांस समीर समाहित हो 
ह्रदय में गहरे पैठ गयी

दिन भर उसको तक कर भी
ह्रदय नहीं भरता मेरा
उसकी छवि देख अचंभित
इस जग का चतुर चितेरा

मधुर गीत सी किलकारी
झरनों सी कलकल करती
उसकी सरल मधुर हंसी
जीवन में नव रंग भरती

वो ठुमक ठुमक जब चलती 
रुनझुन सी बजती आंगन में 
उसकी काली काली आँखे
ज्यूँ भंवरे डोले मधुबन में

अब दिन भर उसको तकती हूँ
बस उसकी सुनती रहती हूँ
उसमे खुद को फिर पाया है
अब सपने बुनती रहती हूँ


.

मैं...

  खुद में मस्त हूँ,मलँग हूँ मैं मुझको बहुत पसंद हूँ बनावट से बहुत दूर हूँ सूफियाना सी तबियत है रेशम में ज्यूँ पैबंद हूँ... ये दिल मचलता है क...