गुरुवार, 23 दिसंबर 2010

अक्सर सोचती हूँ...

स्वप्न कब सार्थक होते है?

अक्सर सोचती हूँ

हर बार प्रश्न अनुत्तरित ही रहता है

क्या तुम बता सकते हो?

कोई तरकीब इन स्वप्नों को

सार्थक करने की...

जो अनघड विचार घूमते है

अंतर्मन की कैद में,

स्वच्छन्द विचरण करने देने की

कोई भी एक तरकीब यदि हो

बताओ ना

बहुत आभारी रहूंगी...



उन्हें रिहा करके

नए ढंग, नए आकार में

फिर ढाल नयन में भर लूंगी

तुम भी चलना चाहो तो चल सकते हो

मेरी अनवरत स्वप्न यात्रा पर

साथ साथ मेरे

लेकिन शर्त एक है

ना रोकना,ना टोकना

बस होके मौन,विचरना

महसूस करना उनकी

कोमल संवेदनाओ को

सोमवार, 11 अक्टूबर 2010

यादों के ऊँचे बबूल.....

यादों के ऊँचे बबूल उग आये है दिल की पथरीली जमीन पर
साया ढूँढती  हसरते,तड़पते जज़्बात,चुनते है ख़ार अब दिन रात

जिक्रे मोहब्बत जो कभी होता है कहीं,ख़ामोश लौट आते है बज़्म से
सिहरा सा गुजरता है वो दिन,बहुत थर्राती है वो रात

खुद ही बना लिया नामालूम सा जहान,भटकते रहते है हर पल
खोजते फिरते है खुद को,अजनबी हर है शै,उलझी हुयी हर बात

एक खुदा हो तो इबादत करे कोई, उलझन बड़ी है समझे कहाँ कोई
किसको अब सजदे करे किसको खुदा कहे,बड़े मुश्किल से है हालत

तू बेवफा है की बावफा,क्यूँ सोचूं रात दिन,पालू क्यूँ ये फितूर
मेरी मोहब्बत की तासीर अलग,सनम तेरे जुदा से है हालत

तन को बनाया मोम,और खुद को गला दिया
जलते रहते हैं सनम, शम्मा की मानिंद सारी रात

तू अपनी धुन में मस्त,हम तेरी फिकर में हैं  गुम
तन्हा यहाँ है हम तू जाने कहाँ बसर करके आया रात

दस्ताने मोहब्बत अपनी बस इतनी सी है ऐ सनम
तू जहर दे तेरी ख़ुशी,चाहे पिला दे आब-ऐ-हयात....

रविवार, 10 अक्टूबर 2010

मेरा प्यारा सा कमरा……..

पहाड़ी नदी सी,गुनगुनाती


मुस्कुराती,थोडा शर्माती,

अल्हड,नखरीली सी,थोड़ी हैरान

जब मै उससे मिली थी बरसों पहले

लगा जैसे वो धीरे से मुसकाया था

जब छुआ था होले से उसे मैंने

उसमे नया सा एक रंग नज़र आया था

किया था उससे वादा कभी छोड़ के न जाउंगी

खुशियों के हरेक रंग से उसको सजाउंगी

उसने भी ली थी सौगंध उस दिन

हर पळ साथ निभाऊंगा

खुशियाँ हो या ग़म

तेरे साथ ही बिताऊंगा

हम दोनों थे हमराज,दिन रैन के थे साथी

मेरा वो प्यारा कमरा,जैसे दिया और मै बाती…….

बरसों बिताये संग संग,हमराज वो मेरा था

मल्लिका थी उसकी मै,वो मेरी सल्तनत था.

दिल की हरेक बात,हरेक आह,हरेक चाह

सबसे छुपा कर,चुपके से उसको ही तो बताया

और उसने भी सब कुछ अपने में ही छुपाया

फ़िर तोड़ सारे वादे मै उसको छोड़ आई

एक नए से घर में दुनिया नयी बसाई

वो फ़िर भी रहा मेरा,मै उसकी न रह पाई………

आज बरसों बाद फ़िर याद वो आरहा है

मेरा प्यारा सा कमरा मुझ को बुला रहा है

दिन आखरी वो अपने घर में बिता रहा है

मेरे बचपन के पलों को थपकी दे सुला रहा है

कल टूट जायेगा वो,नामोनिशां भी न रहेगा

पर करती हूँ सच्चा वादा,दिल के कोने में सदा जियेगा…

शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2010

मै एक इमारत.........

मै एक इमारत ना नयी,ना बहुत पुरानी
निस्पंद खड़ी हूँ निबड़ अकेले निर्जन में,

अपने वजूद को तलाशती सी,

खुद को ही कब से पुकारती सी…

अपनी नींव से गहरे जुडी हूँ मै,

या यूँ कह लो बन्धनों में पड़ी हूँ मै..

न कही आ-जा सकती हूँ,न चाहती हूँ

अपने में ही गुम खुद को तलाशती हूँ.

आते जाते हुए लोगों को देखा करती हूँ

हर दिन नए सपने तराशती हूँ..

रोज ख़त्म हो रही है मियाद मेरी

सुनता नहीं कोई फरियाद मेरी..

अपने को ही किसी तरह संभालती हुयी

गुजरे वक़्त को यादों के आईने में निहारती हुयी

खड़ी हूँ जाने कब से तनहा,अलसाई सी,उकताई सी

वक़्त की हर अदा को देखती और सराहती हुयी..

जो थे वाशिंदे मेरे,बहुत ही प्यारे थे,

मै उनकी पसंद थी या….., जानती नहीं

पर वो सारे ही मेरे दुलारे थे.

छोड़ गये जाने क्यूँ मुझ को सभी

क्या बेवफा वो सारे थे??????

गुरुवार, 7 अक्टूबर 2010

बताओ ना..

रोज सुबह जब सूरज उगता है

याद आता है मुझे तुम्हारा शरारत से मुस्काना
धीरे से कहना मेरे कानो में,सुनो
तुम जो भी रंग पहनती हो
झलकता है तुम्हारे चेहरे पर

जब पहनती हो गुलाबी साड़ी
जानती हो, तुम खुद गुलाब हो जाती हो
और उस दिन में बाग़ में नहीं जाता...

जिस दिन तुम पहनती हो पीली साड़ी
सूरज मुखी सी दिखती हो
और मै सूरज की तरह दमकता हूँ

नीली साड़ी में तुम
सावन की बदरी लगती हो
और मै आसमान बन के
समेट लेता हूँ,बांहों में तुम्हे

धानी रंग में तुम
हरी भरी धरती हो जाती हो,
मेरा घर आँगन महकता है तुमसे
तुम से ही जीवन में रंग है मेरे...

तुम्हारी ये बाते मुझे जाने क्यूँ
बहकाती आई है हमेशा,और मै
लहकती फिरती हूँ
तुम्हारे प्यार की खुमारी में

कोई भी रंग चुनने से पहले देखती हूँ
तुम्हारी आँखे आज
क्या देख कर नशीली होंगी

क्या पहनू की तुम
बेसाख्ता बाहों में भर लो मुझे
और कहो फिर से
मेरी मौसम परी तुम ही से बहार है

मै खुद ही ये सोच कर
शर्मा जाती हूँ,और फिर
अचानक मेरा हर रंग
जाने कैसे सिंदूरी हो जाता है
क्या तुम जानते हो इस राज़ को?
बताओ ना..

मंगलवार, 28 सितंबर 2010

ज्वालामुखी..........

जब कभी लगने लगता है

बस अब सब ठीक है

शांति है चारो ओर

ना कोई कोलाहल

ना कोई बैचैनी

ना कोई शोर,

तभी अचानक

जाने कैसे फट पड़ता है

कोई सुप्त ज्वालामुखी

और बहा ले जाता है

हर ख़ुशी,हर हंसी

अपने उबलते लावे से

झुलसा देता है,सब

कलियाँ कुम्हला जाती है

पंछी भूल जाते है उड़ना

रन-बिरंगी तितलियाँ भी

फिर कहाँ नज़र आती है

आज फिर सब ओर शांति है

ना कोई कोलाहल,ना कोई शोर

खिली है कलियाँ,तितलियाँ भी है

पंछी उड़ रहे है डाल डाल

लगता है फिर कहीं दूर

धरती की कोख में

अंगडाईयां ले रहा है

खौल रहा है कोई,ज्वालामुखी..........

सोमवार, 27 सितंबर 2010

कल बदल तो नहीं जाओगे??

तुम सदेव रहोगे पास,
दे कर ये विश्वास,सच कहो,
कहीं छल तो नहीं जाओगे,
कल बदल तो नहीं जाओगे?
मेरे ह्रदय की वीणा के तार
...करते है मधुर पुकार

प्रेम की मीठी गुंजार
पायल की झंकार
सब तुम से है प्रियतम
सच कहो आज इक बार
कहीं छल तो नहीं जाओगे,
कल बदल तो नहीं जाओगे?
संदेह का ये बादल
बन नाग डसे हर पल
जाने क्या होगा कल
क्यूँ जीवन में है हलचल
सच कहो आज इक बार
कहीं छल तो नहीं जाओगे,
कल बदल तो नहीं जाओगे?

मैं...

  खुद में मस्त हूँ,मलँग हूँ मैं मुझको बहुत पसंद हूँ बनावट से बहुत दूर हूँ सूफियाना सी तबियत है रेशम में ज्यूँ पैबंद हूँ... ये दिल मचलता है क...