सोमवार, 30 मई 2011

जिंदगानी की कहानी कहो कैसे सुनाऊ???



जिंदगानी की कहानी
कहो कैसे सुनाऊ?
रंग रूप इसका कैसे बताऊ?
कई रंग इसके,कई ढंग इसके
कहो किस तरह से तुम को दिखाऊं….
कभी रेल सी पटरी पे भागी जाती,
और बैलगाड़ी सी कभी रुकती
कभी चलती,हिचकोले खाती
मद्धम मद्धम चलती जा रही जिंदगी…
कभी सावन की रिमझिम फुहारों सी मदमस्त,
कभी बसंत की बयार सी शीतल,
तो कभी कभी जेठ के अंधड़ भी है जिंदगी…
नदिया की कलकल,झरनों की छम छम
सागर की कहानी,लहरों की जुबानी
तो कभी कभी बाढ़ का पानी भी है जिंदगी…..
कभी साफ़ असमान,कभी बादल घनेरे
कभी सूरज ,कभी चाँद ,कभी बस अँधेरे
उजाले कभी, कभी धुंध गहरी
कभी सर्द शामे,कभी तपती दुपहरी
अनोखी अदा से ये चल रही है,
पल पल रंग बदल रही है
अभी तक इसे मैंने जाना नहीं है
कहना कभी इसने माना नहीं है
करूं लाख कोशिश ये रूकती नहीं है..
मेरी जिद के आगे भी झुकती नहीं है..
अब तुम ही कहो कैसे इसको मनाऊं,
जिंदगानी की कहानी
कहो कैसे सुनाऊ?

गुरुवार, 26 मई 2011

आओ चुगली चुगली खेलें ....

आओ चुगली चुगली खेलें 
जिसके मुकाबिल आना मुश्किल  
चुगली में उसकी जां लेलें 
आओ चुगली चुगली खेले

मन को भाए,खुस पुस बाते
गुप चुप अँखियाँ मुस्काएं 
सिरा पकड़ ले एक छोटा सा
पूरी रामायण लिख जाए

मन भावन अति लगे बुराई
जब दूजे की हो टांग खिंचाई
मधुरस बरसे चुगली में ऐसा
ज्यूँ मुंह में घुल जाए खताई

निंदा रस का स्वाद निराला
नशा अनोखा चढ़ता
जीभ चलाना शगल सलोना
अब इसमे अपना क्या घटता
क्यूँ वो इतना ऊँचा हमसे
खींचो टांग गिराओ धम्मसे
उसकी कमीज सफ़ेद क्यूँ भाई
आओ ढंग से करे धुलाई

खुद को बदलना मुश्किल भईया
क्यूँ ना दूजे की परत उधेड़े
अज़ब ठण्ड सी पड़े कलेजे
जब बातों में उसे थपेड़े

आओ मिलकर बैठे यारो
दिल के जख्मो को सेले
आओ चुगली चुगली खेले
आओ चुगली चुगली खेलें








शुक्रवार, 20 मई 2011

माँ ...

जब कभी भी घेरते है अँधेरे हालातों के 
तू सूरज सी नज़र आती है अब भी माँ
उलझनों में अपनी जब भटकती हूँ
तू नयी राह दिखाती हैअब भी माँ 

तपती दोपहर में साए की तरह
छुपाती है आँचल में अब भी माँ 
ऊँची लहरों में किनारे की तरह
पास बुलाती है मुझे अब भी माँ 

मुश्किलों की आँधियों से सदा
तू मुझको बचाती हैअब भी माँ 
खो के धीरज जो घबरा जाऊं 
एक नया जोश दिलाती हैअब भी माँ


रात दिन दूर तुझसे हूँ बेशक 
तेरी दुआओं में हूँ अब भी माँ 
सहला जाती यूँही ख्यालों में 
तेरी ठंडी नर्म हथेली अब भी माँ

जब भी हो जाता उदास ये दिल
बहला जाती है तू अब भी माँ
नींद जब देर तक नहीं आती
याद आती है तेरी थपकी माँ 

जब देखती हूँ अपनी बिटिया को
खयालो में तू ही मुस्कुराती है माँ
इस तरह शामिल है मेरे वजूद में तू  
मुझमें में भी तू ही नज़र आती है माँ ....


बुधवार, 18 मई 2011

उजली सुबह.........

मेरे बेहिसाब सवाल यूँ उड़ गए 
तुम्हारी एक चुप की आंधी में,
ज्यूँ हवा में अक्सर उड़ जाया करते हैं 
सूखे घास के तिनके,कागज़ की चिंन्दियाँ

होंठों से बहती गीतों की नदी
जाने कब से बहना भूल गयी
अब अक्सर बहा करते हैं 
आँखों से  नमकीन झरने

फिर भी बेसाख्ता दिल धड़क ही जाता है
कम्बखत भूलता ही नहीं नाम तेरा
हर वक़्त तेरे ही कलाम गुनगुनाता है
सच है दिल पे किसी का जोर नहीं

ख्वाब अब अक्सर आते है
ज्यूँ रेतीले अंधड़....
उनसे छुपने की खातिर
कब से नहीं सोयी आँखे

फिर भी कहीं दूर से आता
ठंडी पवन का झोंखा
सहला गया जख्मो को
दे गया दिलासा दिल को
मत घबरा रात बस ढलने को है
वो दूर आ रही है एक उजली सुबह.........

बुधवार, 11 मई 2011

तुम को ही चाहूंगी.......

कब कहा फूल ने माली से
बस मुझे ही सींचो,सम्भालो
भूल कर सारे चमन को
बस मुझे ही तुम निहारो

कब कहा पंछी ने डाली से
मुझे ही करने दो बसेरा
तेरी पात-पात पर बस
सदा रहे अधिकार मेरा

कब कहा किरणों ने सूरजसे
उजाले थाम लो,यूँ ना बिखेरो
ओट में बादल की छुप जाओ 
आगोश में हमको भी लेलो

पर्वतो ने कब कहा नदियों से
दूर मुझसे तुम ना जाओ
गोद मेरी मेरी रहो महफूज
ना प्यास दुनिया की बुझाओ

कब कहा पेड़ो ने हवा से
तुम हो बस मेरी ही थाती
लहकती फिरती हो चहुँ ओर
पत्तियों में क्यूँ ना समाती

कब कहा मैंने तुम्हे,
बस मुझको ही चाहो 
भूल जाओ सब को
बस मुझको सराहो

तुम प्रखर सूरज हो
कैसे तुमको छुपाउंगी 
तुम हो झोखा  हवा का
कैसे तुमको बांध पाउंगी

बंधन में कभी तुमको 
रहना नहीं भाया
मगर क्यूँ भूल बैठे
मैं तुम्हारा ही हूँ साया

जहाँ भी तुम चलोगे 
साथ मै भी आउंगी
कोई भी आये तूफान 
साथ तेरा निभाउंगी
तुम मुझे चाहो ना चाहो 
मै सदा तुमको,
बस तुम को ही चाहूंगी.......





शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

चाँद................. रात

एक दिन अचानक चाँद खो गया
रात भौचक खड़ी थी,सन्नाटे ओढ़े
तारों में अज़ब सी खलबली  थी
सोचों में थे सब ये कैसे हो गया

चाँद रात से दिखा के बेरुखी
अमावस की चादर ओढ़ सो गया
अपनी चांदनी के उजाले समेटे
कहीं दूर,जा अंधेरो में खो गया

रात खामोश थी,ओंस के अश्क बहाती
अपनी गीली नज़रों से,देखती रही
चाँद का रूठना,और यूँ छुप जाना 
अपनी बेबसी पर कुछ और गहराती

चाँद को था यकीन, जब निकला था,
रात उस बिन रह न पायेगी
पकड़ कर बांह रोकेगी,हंस कर मनाएगी

इसी अहसास को थामे,वो घर छोड़ आया
रात के मासूम दिल को छन से तोड़ आया
लगाये सौ इलज़ाम,शिकायत लाख की
पर चाँद तुमने रात की कब परवाह की

कोई ना अब आवाज देता कहीं से
अकेला चाँद तन्हाई में रोता है
ढूँढता रहता है अपना वजूद हर पल
रात की याद में दामन भिगोता है

रात अब भी खड़ी है खामोश तारो को जलाये
चाँद की राह में अपनी पलकें बिछाए
लौटना खुद ही होगा चाँद को ये फैसला है
अकेली चल रही है दिल में पूरा हौसला है...



शनिवार, 5 मार्च 2011

सम्भावनाये…


सम्भावनाये तलाशती है राहे,
सफल होने की चाहे…
कीमत कोई भी हो चलेगी
पर सफलता तो मिलेगी…
भागती सड़के पथरीली निगाहे
भीढ़ के बीच पिसती चाहे…
बंद दरवाजों से झांकती
साथ किसी का मांगती
पिंजरे के पंछी की आहे
बेबस बचपन की मासूम निगाहें…
संसार का सूनापन झेलते
अपना बुढापा ठेलते
अकेलेपन का दंश झेलते
जी रहे दो बूढे शरीर
सूनी है उनकी निगाहे
कौन सुनेगा उनकी आहे…
मोहब्बत का नहीं है वक़्त
दौलत की हवस तारी है
जरुरत नहीं महबूब की
बस सिक्कों से यारी है
सूना है दिल, सूनी है बाहे
जाने क्या ढूंढती निगाहे
भटकता बचपन ढूंढता है
सकूं नशे के सीने में,
माँ बाप तलाश रहे
वैभव खून पसीने में
टूटा घर बिखरते रिश्ते
घुटती सांसे,दम तोड़ती आशाये
अंत फिर भी वही
सम्भावनाये तलाशती है राहे,
सफल होने की चाहे…

मैं...

  खुद में मस्त हूँ,मलँग हूँ मैं मुझको बहुत पसंद हूँ बनावट से बहुत दूर हूँ सूफियाना सी तबियत है रेशम में ज्यूँ पैबंद हूँ... ये दिल मचलता है क...