शुक्रवार, 6 अगस्त 2010

mai aur tum

तू ही मेरी बात आज 
मान क्यूँ नहीं जाता?
जाने क्यूँ तेरी हर बात 
मै चुप हो के सुनती हूँ?
तू सोचने लगता है कि, 
चुप है तो सहमत है, लेकिन
मेरे दिल में उमड़ते,उठते
प्रतिरोध को समझ नहीं पाता है
क्यूँ चाहता है तेरी हर बात 
बिन कहे ही मेरी बात बन जाये
जबकि मेरे जज्बात कभी 
तू समझ भी नहीं पता
माहिर है बहुत तू दुनियादारी में
पर दिल को मेरे तो कभी तू पढ़ नहीं पाता
हर बार मेरी हार तेरी जीत होती है
तू जीत कर भी जश्न क्यूँ मुझसे ही है चाहता
जो ख्वाब तेरे है वो तेरी आँखों में है
पर क्यूँ तू मेरी हकीकत भी देख नहीं पाता
मै जोड़ती हूँ हर रिश्ता मोहब्बत की डोर से
तू हर बार इसी कमजोरी का फायदा है उठाता
ये नहीं कहती की संगदिल है तू,फिर भी
मेरी हालत क्यूँ कभी जान नहीं पाता.. ...
कहीं ऐसा तो नहीं जानना ही नहीं चाहता!!!!!!!!!!!

2 टिप्‍पणियां:

  1. bhawpurn rachna...........Asha jee!!

    aapne bahut khubsurat shabdo me isko peeroya hai, achchha laga padh kar, waise pahlee baar aaya hoon!!

    fir aisa bhi lag raha hai, iss antarjaal ki duniya me aap nayee hain..........:)

    swagat hai aapka!!

    aapko follow karne se khud ko rok nahi paya.......!

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